“दान उत्सव”!

by | Nov 11, 2017

Contributed by: Rishu Sharma
Dated: 19th Oct, 2017

पहली बार इस जमाने में कुछ सच्चा लगा, ये फ़रमान मुझे काफ़ी अच्छा लगा। प्रोजेक्ट खेल साफ़-साफ़ लिखा था, स्पष्ट और शानदार लिखा था। जब समझा इसे बैठ कर आराम से एक कोने में, तो दिल में यहाँ जाने का विचार लिखा था। बड़ी अनोखी सी स्टोरी थी, आज ठेलों पर काम कर रहे लोगों को आराम दे, हमें करनी मज़दूरी थी। काफ़ी ख़ुश था कि जिस देश में 2 रुपए तक का मुनाफ़ा इन्हें सरकार नहीँ करा पाती, आज मेहनत से अपनी, इनके ठेलों को संभाल कुछ पल की खुशियां दे जाऊंगा, आज पहली बार किसी और के लिए मैं खुशियां कमाऊंगा।

वहाँ पहुंचने पर प्रोजेक्ट खेल का हमें ये कार्य समझाना, कैसे मदद करनी हैं, ये पूरा प्लान समझाना काफ़ी उम्दा था। जब सबकुछ समझ, इन लोगों से इनके ठेलों पर काम मांगा, तो कुछ ने कहा भईया आपसे नहीँ हो पाएगा, तो कुछ ने कहा आप खा लीजिए पर काम हमे करने दीजिए। कुछ तो इतने हैरान थे पूछते हैं. “भईया क्यों मज़ाक करते हो, आज के ज़माने में हमारी मदद कर रहे हो?” मैंने पूछा,”क्यों भाई? तुम भी इंसान हो, हम भी इंसान हैं तो फिर क्यों हमारी इस नेक मंशा पर तुम्हारे शंका के सवाल हैं?”  इस जवाब को सुन उसने मुझे अपनी जगह काम करने का मौका दिया।

उस दिन जब ग्राहक जुटाने में मेरे पसीने छुटे, तब जाना की ठेलों पर मेहनत के कितने रंग होते हैं। करीबन 3 घंटे की उस शाम में, मैंने इंसान बनना सीखा, बहुत नहीँ, तो कम-से-कम एक सिक्के से लेकर अन्न के एक दाने का महत्व समझा। जब उसके 10 रुपये के समान को मैं प्रोजेक्ट खेल के नियमों के हिस्साब से लोगों को समझाता था, तो समझ आता था कि सच में मेरा भारत महान हैं, 10 रुपये की चीज़ को कुछ लोग 20 रूपये, तो कोई 100 रूपये में ख़रीद के ले जाते थे ।

एक कहावत के अनुसार अंत भला तो सब भला और ऐसा ही कुछ अंत हुआ उस शाम का, जब मैंने और मेरे सहयोग के रूप में मौजूद एक बच्ची ने उस ठेले वाले के हाथ में मेहनत की कमाई पकड़ाई, तो पैसे गिनकर उसके आंखों में आंसू आ गए। उसकी एक दिन की कमाई की जगह आज उसके हाथों में अगले आने वाले तीन दिनों तक कि कमाई थी। वो मेरे सीने से लगा, उसकी आँखों से खुशी के कुछ आंसू झलके और उसने बड़ी सरलता से कहा भईया आपने तो मेरी दीवाली खुशियों से सज़ा दी। ये सुन न जाने एक अज़ीब सी लहर मेरे शरीर में दौड़ी, मैं काफ़ी खुश था और खुशी को बयां करना मुमकिन न था ।

बहुत आभारी हूँ मैं प्रोजेक्ट खेल का, पर एक असमंजस्य में भी हूँ, समझ नहीं पा रहा जिस संस्था के दान उत्सव से हज़ारो को जुड़ना चाहिए वहाँ सिर्फ 10- 15 लोगों के जुड़ने से कितनों के घर सजेंगे। एक त्यौहार का महत्व इस देश से ज़्यादा कहा का इंसान समझ सकता हैं । जरा सोचिए आप ही तो कहते हैं कि खुशियां बाटने से बढ़ती हैं। तो उठाइए अपने मोबाइल फ़ोन और जुड़िए प्रोजेक्ट खेल से I जीवन के समंदर में खुशियां ढूंढने से अच्छा हैं, खुशियां बाँटिये क्योंकि जैसे ये देश आपका हैं, यहाँ के लोग भी आपके हैं, बाकी बात तो सिर्फ़ नज़रिए की हैं ।